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Showing posts from May, 2020

Real Story - Part IV

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दोस्तों ये कहानी का चौथा पार्ट है अगर आपलोगो ने पहले तीन पार्ट नहीं पढ़े है तो सबसे पहले आप उस पार्ट को पढ़िए।  मैं अपने वेबसाइट का लिंक निचे दे दूंगा आप उसपर क्लिक कर के पढ़ सकते है। अगर ये कहानी आपलोगो को अच्छी लगे तो इसे शेयर करना ना भूले।  स्कूल का दूसरा दिन, रोज की तरह वो तैयार होकर स्कूल के लिए निकला, स्कूल पहुंचते ही वह अपनी बैठने की जगह खोज के बैठ गया। स्कूल में यह नियम था की हर बच्चो को अलग अलग दिन क्लास की सफाई करनी पड़ती थी। सफाई करने के बाद प्रार्थना किया जाता था जिसमे से कुछ बच्चे आगे जा के प्रार्थना बोलते और दूसरे बच्चे उसको दोहराते। ये तो सब जानते है की स्कूल के सुरुआती दिनों में किसी भी बच्चे का मन नहीं करता स्कूल जाने को जबतक पापा से पिटाई नहीं खाई तब तक जाने को मन नहीं करता। 😅😅😅😅 पढाई सुरु हुई और आप समझ सकते है की जिस क्लास में पहली कक्षा से लेकर आठवीं कक्षा के बच्चे हो तो पढ़ाई कम और आवाज ज्यादा होती है तो वहा भी यही हाल था।  शिक्षक हमें पढ़ाते और हम सब दोहराते मगर दिक्कत ये थी की पहली से लेकर आठवीं तक को एक ही चीज पढाई जाती थी।😕😕😕😕😕 वो तो बाद में पता चला की

Real Story - Part III

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दोस्तों यह कहानी का तीसरा पार्ट है। अगर जिसने पहले दो पार्ट को नहीं पढ़ा है उसके लिए मैं  लिंक निचे दे दूंगा आपलोग उसपर क्लिक कर के पहले दो पार्ट को पढ़ सकते हैं। पहला दिन स्कूल का,  वो स्कूल के अंदर गया और उसने देखा की सारे बच्चे के पास चादर जैसी एक पैकेट थी जिसपर वो लोग बैठते थे। उस दिन उसके पास बैठने के लिए कुछ नहीं था जिसकी वजह से वो निचे जमीन पर ही बैठ गया। उन दिनों सरकारी स्कूलो में बैठने के लिए कोई टेबल और बेंच नहीं होता था। उसके स्कूल में जमीन मिट्टी की और एक बड़ा सा ब्लैक बोर्ड दिवार के साथ चिपका हुआ था। एक ही की कमरे में पहली कक्षा से लेकर आठवीं कक्षा तक के बच्चे बैठते थे। अगर किसी दिन ज्यादा बच्चे आते तो कुछ बच्चे को कमरे से बाहर बिठाते थे। सबसे ज्याद परेशानी उनलोगो को बरसात के मौसम में होती थी क्युकि स्कुल का ऊपर वाला हिस्सा टूटा हुआ था जिसके कारण ऊपर से पानी टपकती थी और बैठने में परेशानी होती थी। उसके स्कूल का टाइमिंग सुबह 10:00 बजे से लेकर शाम 4:00 बजे तक था और लंच का समय दोपहर 1:30 बजे थी। दोपहर का खाना स्कूल की तरफ से ही मिलता था। उस स्कूल के

Real Story - Part II

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दोस्तों यह कहानी का दूसरा पार्ट है। अगर जिसने पहला पार्ट नहीं पढ़ा है उसके लिए मैं पहले पार्ट की कहानी का लिंक निचे दे दूंगा आपलोग उसपर क्लिक कर के पहले पार्ट को पढ़ सकते हैं।  उस लड़के के स्कूल से उस की नई जन्म दिन की तारीख 4 फरवरी 1996  तय की गई। और उसका दाख़िला पहली कक्षा में हो गया। उस स्कूल में पहली कक्षा के नीचे कोई कक्षा नहीं थी जिसके कारण उसकी पढाई पहली कक्षा से शुरू हुई।  सामान्यतः बच्चे अपनी पढाई की शुरुआत नर्सरी से करते है। मगर इस स्कूल में ना तो नर्सरी थी और ना ही केजी ।   उसका स्कूल एक कमरे का था जो की तालाब के किनारें स्थित था।  स्कूल जाने का दिन आया उसकी माँ उसे स्कूल  के लिए तैयार कर रही थी। जैसा की मैंने बताया था अपने पहले पार्ट में वो बहुत ही गरीब था।  उसकी माँ ने उसे हाफ़ पैंट और एक फटा हुआ सर्ट पहना दिया और उसके हाथ में एक प्लास्टिक का बैग  ( जिसे वे लोग झोला बोलते है ) पकड़ा दिया जिसमे एक नोटबुक, एक पेंसिल और एक खाने की थाली थी। ना पैरो में चप्पल और ना कांधे पैर स्कूल बैग।  जब वह स्कूल जाने के लिए घर से निकला तो रास्ते में उसने एक लड़के को देखा जिसके