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Real Story - Part II

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दोस्तों यह कहानी का दूसरा पार्ट है। अगर जिसने पहला पार्ट नहीं पढ़ा है उसके लिए मैं पहले पार्ट की कहानी का लिंक निचे दे दूंगा आपलोग उसपर क्लिक कर के पहले पार्ट को पढ़ सकते हैं।  उस लड़के के स्कूल से उस की नई जन्म दिन की तारीख 4 फरवरी 1996  तय की गई। और उसका दाख़िला पहली कक्षा में हो गया। उस स्कूल में पहली कक्षा के नीचे कोई कक्षा नहीं थी जिसके कारण उसकी पढाई पहली कक्षा से शुरू हुई।  सामान्यतः बच्चे अपनी पढाई की शुरुआत नर्सरी से करते है। मगर इस स्कूल में ना तो नर्सरी थी और ना ही केजी ।   उसका स्कूल एक कमरे का था जो की तालाब के किनारें स्थित था।  स्कूल जाने का दिन आया उसकी माँ उसे स्कूल  के लिए तैयार कर रही थी। जैसा की मैंने बताया था अपने पहले पार्ट में वो बहुत ही गरीब था।  उसकी माँ ने उसे हाफ़ पैंट और एक फटा हुआ सर्ट पहना दिया और उसके हाथ में एक प्लास्टिक का बैग  ( जिसे वे लोग झोला बोलते है ) पकड़ा दिया जिसमे एक नोटबुक, एक पेंसिल और एक खाने की थाली थी। ना पैरो में चप्पल और ना कांधे पैर स्कूल बैग।  जब वह स्...

Real Story - Part I

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हेलो दोस्तों आज मैं आपलोगो को एक सच्ची कहानी सुनाने जा रहा हू। यह  कहानी एक लड़के की है जिसका नाम और पता कहानी के अंत में बताऊंगा। दोस्तों यह कहानी उन सभी लोगो के लिए  है  जिन्होंने अपने जीवन में संघर्ष किया है। मैं आशा करता हू की यह कहानी आपलोगों को पसंद आएगी।  उसका जन्म एक मजदूर के घर हुआ था। उसके पिताजी मजदूरी करते है और माँ हॉउस वाइफ है। उनदिनों जन्म दिन की तारीख़ कोई लिख के नहीं रखता  था। जिसके कारण उसको उसका सही जन्म दिन की तारीख पता नहीं था। उसके छः भाई और एक बहन है। इसका  स्थान चौथा है। इनके पिताजी ने सारे भाइयो और बहन  को पढ़ाया। मजदूर होने के बावजूद भी किसी भी चीज की कमी नहीं होने दी। वो कहते है न की ....  "एक माँ अपने बच्चे को गोद  में लेकर चलती है क्यूकि वो चाहती है की उसके बच्चे वो सब देखे जो वो देखीं  है, वही एक बाप अपने बच्चो को कंधे पर बिठा के चलते है क्युकि वो ये चाहते है की उसका बच्चा वो सब देखे जो उसने नहीं देखा है।"  मगर इसके पिताजी जो चाहते थे वो नहीं हो पाया मतलब इस लड़के के बड़े भ...